Sunday, July 11, 2010

आज याद हम दादी को करते हैं..

आज याद उनको हम करते हैं
जिनके बगैर हम कभी रह भी नहीं पाते थे
पीछे पीछे जिनके दिन रात हम चला करते थे
कभी गोद में पाँव चलाना 
तो कभी पल्लू पकड़ कर जिनका
हमने चलना सीखा
वो दादी जब नहीं रही
तो आज हम उनको याद करते हैं.....

वो पल जब हम गर्म दोपहरों में सो कर
उठा करते थे ,आँखों को मलते हुए 
दादी को खोजा करते  थे और 
वो देकर बतासे हमको पानी
पीने को कहती थीं 
इन गर्म दोपहरों में दूर ,बहुत दूर उनसे 
आज फिर हम उनको याद करते हैं,...

बचपन जिनके इर्द गिर्द बीता
किशोरावस्था में जिनसे मिलने को
गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार किया 
जवानी में जिनको लगभग भूला दिया
उस दादी के तेरही में भी ना जा पाने पर
जाने क्यूँ ये बेपरवाह नैन 
आसुओं को बेलगाम बहाए जा रहे हैं और 
आज अनायास ही  हम उनको याद करते हैं...

कहते हैं लोग कि दादी को हम 
छोड़ा ही नहीं करते थे 
हर पल उनसे ही लग कर रहते थे
याद तो हम को भी आती हैं वो रातें
जब हम बिन कुछ खाए ही 
सो जाया करते थे 
और दादी जाने कब चीनी वाला दूध
गिलास भर कर पिला जाती थीं
बाद में जिसे हम अपने दूध के  दाँतों के
सड़ने का वजह बतलाते थे
जाने क्यूँ हमने पहले ध्यान ना दिया
उन बूढी हड्डियों में फँसी उस जान का 
आज भीगे पलकों से जिनको हम याद करते हैं...

 कभी पढाई का बहाना
तो कभी इम्तिहान का 
हर बार जब भी दादी ने मिलने को बुलाया
मिला उन्हें बस एक बहाना
आज भी बहाना था 
नौकरी का बहाना 
और हम दूर रहे अंतिम संस्कारों से भी जिनके
 आज हम उनको याद करते हैं....

जिनकी एक तस्वीर भी नहीं हमारे पास
उस राहगीर को याद करते हैं  
अब तो बचा कुछ भी नहीं जिनका 
आज हम उनको याद करते हैं....

Friday, October 2, 2009

हास को अपना अस्त्र बना ले(LAUGH OUT LOUD)


















जीवन पथ पे ग़म के बादल
पग पग पे गरजेंगे ही
जाने कब, पर मुसीबतों  की बिजली
सब पर एक दिन गिरनी है ही||

जो चीज़ अटल है उससे
 डरकर जीना बेमौत मरना तो है ही
बेमौत मरे ही क्यूँ हम
जब इक दिन मरना है ही ||

अरे! बिन बादल बरसात 
तो मुश्किल से ही होती है
लेकिन बादल तो अक्सर 
भिगो के जाता है ही ||

फिर ऐसी खुशियों का क्या मतलब
जो बिन कुछ दर्द दिए ही आ जाये
आखिर पीने का असल मज़ा तो तब ही है
जब प्यास चरम तक आ जाये ||


माना कथनी और करनी में
अंतर तो होता ही है
लेकिन प्रयास करना तो
मानव के बस में है ही ||


हर एक चुनौती अवसर है
खुद को बेहतर बनाने का
लेकिन हर बाधा एक मौका है
खुशियों का सागर पाने का ही  ||


तो ग़म ना कर तू ग़म का प्राणी
ये तो बस इक बहाना है
थोडा सा बस धीर तू धर 
आगे खुशियों का खज़ाना तो है ही ||


इसलिए तू  ग़म का खौफ़ ना कर
ये तो उस कड़वी दवा-सी है
जिसको हज़म करने के बाद 
मर्ज़ से राहत मिलती तो है ही  ||


हँसना ही तेरा धर्म है प्राणी
हँसाना ही तेरा कर्म,
हास को अपना अस्त्र बना ले
ग़म -दानव तो आयेंगे ही  ||

"  सदा प्रसन्नचित्त रहिए,
वातावरण को शुद्ध रखिए "


Tuesday, September 29, 2009

'विनोदी' सिद्धांत

विनोदी के जीवन का एकमात्र उद्देश्य ये है कि उसके माता -पिता ,भाई -बहन,मित्र गण और हर वो व्यक्ति जिसके संपर्क में वो आता है  या  हर वो व्यक्ति जो उसके संपर्क में आता है  -सदैव खुश रहें ;इसके लिए ये अत्यावश्यक है कि वो भी स्वस्थ रहे  एवं  उसके संपर्क में आने वाले लोग भी स्वस्थ रहें |
इसी को ध्यान में रखते हुए  वो तीन सिद्धांतों या कहें तो नुस्खों का विशेष  रूप से अपने जीवन में पालन करता है  जिन्हें उसने बचपन में अपने नाना की एक पुस्तक में पढ़ा था और शीघ्र ही आत्मसात कर लिया था   -

" स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए हंसो,
 दूसरों को स्वस्थ रखने के लिए मुस्कुराओ,
प्रकृति को स्वस्थ रखने के लिए प्रसन्नचित्त रहो ||"